Shri Neelkanth Stotram

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शिवभक्ति में रत भक्त अपने दिल की गहराइयों से उत्कृष्टता का आनंद लेता है और उनकी ध्यान योग्यता को सहारा लेकर महादेव के साकार रूप को साक्षात करता है। श्री नीलकंठ स्तोत्रम एक ऐसा प्रमुख स्तोत्र है जो भगवान शिव की अनंत कल्याण गुणों को स्तुति करता है और भक्त को उनके दिव्य रूप में लीन करता है। इस लेख में, हम श्री नीलकंठ स्तोत्रम का विशेषांकरण करेंगे और इसके महत्वपूर्ण पंक्तियों के माध्यम से महादेव की महिमा को समझेंगे।

श्री नीलकंठ स्तोत्रम हिंदू धर्म के मान्यता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसे सात बार पढ़ने से मान्यता है कि व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इसे पढ़ने से पहले साधक को कुछ महत्वपूर्ण उपायों का पालन करना चाहिए, जो इसे और भी प्रभावशाली बना देते हैं।

श्री नीलकंठ स्तोत्रम्

विनियोग

ॐ अस्य श्री भगवान नीलकंठ सदा-शिव-स्तोत्र मंत्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्ठुप छन्दः, श्री नीलकंठ सदाशिवो देवता, ब्रह्म बीजं, पार्वती शक्तिः, मम समस्त पाप क्षयार्थंक्षे म-स्थै-आर्यु-आरोग्य-अभिवृद्धयर्थं मोक्षादि-चतुर्वर्ग-साधनार्थं च श्री नीलकंठ-सदाशिव-प्रसाद-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यास

श्री ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि। अनुष्टुप छन्दसेनमः मुखे। श्री नीलकंठ सदाशिव देवतायै नमः हृदि। ब्रह्म बीजाय नमः लिंगे। पार्वती शक्त्यैनमः नाभौ। मम समस्त पाप क्षयार्थंक्षेम-स्थै-आर्यु-आरोग्य-अभिवृद्धयर्थं मोक्षादि-चतुर्वर्ग-साधनार्थंच श्री नीलकंठ-सदाशिव-प्रसाद-सिद्धयर्थे जविनियोगाय नमः सर्वांगे।

स्तोत्रम्

ॐ नमो नीलकंठाय, श्वेत-शरीराय, सर्पा लंकार भूषिताय, भुजंग परिकराय, नागयज्ञो पवीताय, अनेक मृत्यु विनाशाय नमः। युग युगांत काल प्रलय-प्रचंडाय, प्र ज्वाल-मुखाय नमः। दंष्ट्राकराल घोर रूपाय हूं हूं फट् स्वाहा। ज्वालामुखाय, मंत्र करालाय, प्रचंडार्क सहस्त्रांशु चंडाय नमः। कर्पूर मोद परिमलांगाय नमः।

ॐ इंद्र नील महानील वज्र वैलक्ष्य मणि माणिक्य मुकुट भूषणाय हन हन हन दहन दहनाय ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर घोर घोर तनुरूप चट चट प्रचट प्रचट कह कह वम वम बंध बंध घातय घातय हूं फट् जरा मरण भय हूं हूं फट्‍ स्वाहा। आत्म मंत्र संरक्षणाय नम:।

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं स्फुर अघोर रूपाय रथ रथ तंत्र तंत्र चट् चट् कह कह मद मद दहन दाहनाय ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर घोर घोर तनुरूप चट चट प्रचट प्रचट कह कह वम वम बंध बंध घातय घातय हूं फट् जरा मरण भय हूं हूं फट् स्वाहा।

अनंताघोर ज्वर मरण भय क्षय कुष्ठ व्याधि विनाशाय, शाकिनी डाकिनी ब्रह्मराक्षस दैत्य दानव बंधनाय, अपस्मार भूत बैताल डाकिनी शाकिनी सर्व ग्रह विनाशाय, मंत्र कोटि प्रकटाय पर विद्योच्छेदनाय, हूं हूं फट् स्वाहा। आत्म मंत्र सरंक्षणाय नमः।

ॐ ह्रां ह्रीं हौं नमो भूत डामरी ज्वालवश भूतानां द्वादश भू तानांत्रयो दश षोडश प्रेतानां पंच दश डाकिनी शाकिनीनां हन हन। दहन दारनाथ! एकाहिक द्वयाहिक त्र्याहिक चातुर्थिक पंचाहिक व्याघ्य पादांत वातादि वात सरिक कफ पित्तक काश श्वास श्लेष्मादिकं दह दह छिन्धि छिन्धि श्रीमहादेव निर्मित स्तंभन मोहन वश्याकर्षणोच्चाटन कीलना द्वेषण इति षट् कर्माणि वृत्य हूं हूं फट् स्वाहा।

वात-ज्वर मरण-भय छिन्न छिन्न नेह नेह भूतज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर रात्रिज्वर शीतज्वर तापज्वर बालज्वर कुमारज्वर अमितज्वर दहनज्वर ब्रह्मज्वर विष्णुज्वर रूद्रज्वर मारीज्वर प्रवेशज्वर कामादि विषमज्वर मारी ज्वर प्रचण्ड घराय प्रमथेश्वर! शीघ्रं हूं हूं फट् स्वाहा।

॥ ॐ नमो नीलकंठाय, दक्षज्वर ध्वंसनाय श्री नीलकंठाय नमः॥

फलश्रुति:

सप्तवारं पठेत्स्त्रोत्रम्‌ मनसा मनसा चिंतितं जपेत ।
तत्सर्वं सफलं प्राप्तं शिवलोकं स गच्छति ॥

॥ इतिश्री नीलकंठ स्तोत्रम संपूर्ण: ॥

तंत्र क्रिया का निवारण:

यदि किसी व्यक्ति को ऐसा अनुभव हो कि उपर से किसी ने तंत्र क्रिया की है, तो उसे नित्य प्रतिदिन स्नान आदि करके पूजा स्थान पर एक कलश में जल भरकर रखना चाहिए। फिर भगवान शिव का ध्यान करके श्री नीलकंठ स्तोत्रम का पाठ करना चाहिए। पाठ करने के बाद जल में फूंक मारकर उस जल से अपने ऊपर, परिजनों पर, और निवास स्थान पर छींटे मारना चाहिए और उस जल को घर के सभी सदस्यों को पीलाना चाहिए।

श्री नीलकंठ अघोर मंत्र स्तोत्रम:

श्री नीलकंठ स्तोत्रम का पाठ पूरी श्रद्धा और भक्ति से करने से कई लाभ होते हैं:

  1. शत्रुओं से रक्षा: साधक को कोई भी हानि नहीं पहुँचती, और वह हर समस्या, बाधा और प्रपंच से सुरक्षित रहता है।
  2. अकाल मृत्यु से मुक्ति: यह साधक को असमय मृत्यु के भय से मुक्ति दिलाता है।
  3. धन-समृद्धि और सुख: श्री नीलकंठ स्तोत्रम का पाठ करने से धन-समृद्धि और सभी भौतिक सुख प्राप्त होते हैं।
  4. समस्याओं का निवारण: इस स्तोत्र से सभी जीवन की समस्याएं दूर होती हैं।
  5. असाध्य रोगों से मुक्ति: यह साधक को असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाता है।
  6. दोषों का निवारण: इस स्तोत्र से समस्त दोषों का निवारण होता है।

श्री नीलकंठ स्तोत्रम के पाठ की विधि:

  1. नित्य प्रतिदिन प्रात:काल स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. शिवालय में जाकर भगवान शिव को जल चढ़ाएं, यदि संभव हो।
  3. फिर अपने घर के पूजा स्थान पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन बिछाएं, दीपक जलाएं, एक कलश में जल रखें, और श्री नीलकंठ स्तोत्रम का पाठ करें।

विशेष:

श्री नीलकंठ स्तोत्रम के 108 पाठ करने से यह सिद्ध होता है कि साधक के लिए कोई भी लक्ष्य असाध्य नहीं रहता। इसका पाठ सात बार करने से भी बहुत अधिक लाभ होता है और यह साधक को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है।

इस प्रकार, श्री नीलकंठ स्तोत्रम एक शक्तिशाली मंत्र है जो साधक को जीवन के विभिन्न पहलुओं में सहायक बनाता है और उसे आत्मा संयम और शक्ति प्रदान करता है।

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