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5 months ago
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मौलाना अबुल कलाम आजाद का असली नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन है। लेकिन इन्हें मौलाना आजाद नाम से ही जाना जाता है। स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई के समय मौलाना आजाद मुख्य सेनानी में से एक थे। मौलाना आजाद ये एक महान वैज्ञानिक, एक राजनेता और कवी थे।
आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए इन्होने अपने पेशेवर काम को भी छोड़ दिया, और देशभक्ति के चलते देश की आजादी के लिए बाकि लोगों के साथ काम करने लगे। मौलाना आजाद, गाँधी जी के अनुयायी थे, उन्होंने गाँधी जी के साथ अहिंसा का साथ देते हुए, सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलन में बढ़चढ़ के हिस्सा लिया था।
बाकि मुसलमान लीडर जैसे मोहम्मद अली जिन्ना आदि से अलग, मौलाना आजाद भारत देश की स्वतंत्रता को सांप्रदायिक स्वतंत्रता से बढ़ कर मानते थे। उन्होंने धार्मिक सद्भाव के लिए काम किया है और देश विभाजन के कट्टर प्रतिद्वंद्वी भी थे। मौलाना आजाद ने लम्बे समय तक भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी, साथ ही भारत पाकिस्तान विभाजन के गवाह बने।
लेकिन एक सच्चे भारतीय होने के कारण उन्होंने स्वतंत्रता के बाद भारत में रहकर इसके विकास में कार्य किया और पहले शिक्षा मंत्री बन, देश की शिक्षा पद्धति सुधारने का ज़िम्मा उठाया।
आजाद का जन्म 11 नवम्बर 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ था। इनके पिता मोहम्मद खैरुद्दीन एक बंगाली मौलाना थे, जो बहुत बड़े विद्वान थे। जबकि इनकी माता अरब की थी, जो शेख मोहम्मद ज़हर वात्री की बेटी थी, जो मदीना में एक मौलवी थी, जिनका नाम अरब के अलावा बाहरी देशों में भी हुआ करता था।
मौलाना खैरुद्दीन अपने परिवार के साथ बंगाली राज्य में रहा करते थे, लेकिन 1857 के समय हुई विद्रोह की लड़ाई में उन्हें भारत देश छोड़ कर अरब जाना पड़ा, जहाँ मौलाना आजाद का जन्म हुआ। मौलाना आजाद जब 2 वर्ष के थे, तब 1890 में उनका परिवार वापस भारत आ गया और कलकत्ता में बस गया। 13 साल की उम्र में मौलाना आजाद की शादी जुलेखा बेगम से हो गई।
मौलाना आजाद का परिवार रूढ़िवादी ख्यालों का था, इसका असर उनकी शिक्षा में पड़ा। मौलाना आजाद को परंपरागत इस्लामी शिक्षा दी गई। लेकिन मौलाना आजाद के परिवार के सभी वंशों को इस्लामी शिक्षा का बखूबी ज्ञान था, और ये ज्ञान मौलाना आजाद को विरासत में मिला।
आजाद को सबसे पहले शिक्षा उनके घर पर ही उनके पिता द्वारा दी गई, इसके बाद उनके लिए शिक्षक नियुक्त किये गए, जो उन्हें संबंधित क्षेत्रों में शिक्षा दिया करते थे। आजाद ने सबसे पहले अरबी, फारसी भाषा सीखी, इसके बाद उन्होंने दर्शनशास्त्र, ज्यामिति, गणित और बीजगणित का ज्ञान प्राप्त किया।
इसके साथ ही इन्होने बंगाली एवं उर्दू भाषा का भी अध्यन किया। आजाद को पढाई का बहुत शौक थे, वे बहुत मन लगाकर पढाई किया करते थे, वे खुद से अंग्रेजी, विश्व का इतिहास एवं राजनीती के बारे में पढ़ा करते थे। मौलाना आजाद एक मेधावी छात्र थे, जिनमें विशेष ज्ञान की योग्यता थी, जो उन्हें समकालीन से आगे रहने में मदद करता था। मौलाना आजाद को एक विशेष शिक्षा और ट्रेनिंग दी गई, जो मौलवी बनने के लिए जरुरी थी।
युवा उम्र में ही आजाद जी ने बहुत सी पत्रिकाओं में काम किया। वे साप्ताहिक समाचार पत्र ‘अल-मिस्वाह’ के संपादक थे, साथ ही इन्होने पवित्र कुरान के सिद्धांतों की व्याख्या अपनी दूसरी रचनाओं में की। यह वह समय था जब वे कट्टरपंथी राजनीतिक दृष्टिकोण रखते थे, जो अचानक भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के साथ बदलकर राष्ट्रीयता के रूप में विकसित हो गई।
वे ब्रिटिश राज और मुसलमानों के साम्प्रदायिक मुद्दों को तवज्जो नहीं देते थे, उनका मानना था कि देश की आजादी इन सभी मुद्दों से कही ज्यादा बढ़ कर है। मौलाना आजाद अफगानिस्तान, इराक, मिस्र, सीरिया और तुर्की की यात्रा पर गए, जहाँ उनकी सोच बदली और उनका विश्वास राष्ट्रवादी क्रांतिकारी के रूप में सामने आया।
भारत लौटने के बाद, वे प्रमुख हिन्दू क्रांतिकारियों श्री अरबिंदो और श्याम सुन्दर चक्रवर्ती से प्रभावित हुए, और आजाद जी ने उनके साथ मिलकर सक्रिय रूप से स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष में भाग लिया। इस दौरान आजाद जी ने देखा कि क्रांतिकारी गतिविधियों बंगाल और बिहार तक ही सीमित थी।
दो सालों के अंदर मौलाना अबुल कलाम आजाद ने उत्तरी भारत और बंबई भर में गुप्त क्रांतिकारी केंद्रों की स्थापना में मदद की। उस समय इन क्रांतिकारी केन्दों में अधिकतर क्रांतिकारी मुस्लिम विरोधी हुआ करते थे, क्यूंकि उन लोगों का मानना था कि ब्रिटिश सरकार, भारत की आजादी के विरुध्य मुस्लिम समुदाय का इस्तेमाल कर रही है। आजाद जी ने अपने सहयोगियों की, मुस्लिम विरोधी सोच को बदलने की बहुत कोशिश की।
अन्य मुस्लिम कार्यकर्ताओं के विपरीत, मौलाना आजाद बंगाल के विभाजन का विरोध किया करते थे, उन्होंने सांप्रदायिक अलगाववाद के लिए ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की याचिका को भी खारिज कर दिया था। वे भारत में नस्लीय भेदभाव के सख्त खिलाफ थे।
22 फ़रवरी 1958 को स्ट्रोक के चलते, मौलाना आजाद जी की अचानक दिल्ली में मृत्यु हो गई।
भारत में शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाने की शुरुवात मौलाना आजाद जी ने ही की थी। उनको भारत देश में शिक्षा का संस्थापक कहें, तो ये गलत नहीं होगा। आज मौलाना जी के अथक प्रयास के चलते ही भारत शिक्षा में इतना आगे बढ़ गया गया।
मौलाना जी जानते थे, देश की उन्नति एवं विकास के लिए शिक्षा का मजबूत होना बहुत जरुरी है। यही कारण है कि अपने अंतिम दिनों में भी वे इसी ओर प्रयासरत रहे।
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