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2 years ago
Kamala Stotram PDF, कमलास्तोत्रम् PDF, Kamala Stotram Lyrics In Sanskrit PDF, कमलास्तोत्रम् के फायदे PDF Free Download
कमला स्तोत्रम सबसे अद्भुत और चमत्कारी भजनों में से एक है जो कमला देवी को समर्पित है। कमला देवी देवी लक्ष्मी जी के रूपों में से एक हैं। कमला स्तोत्रम में चालीस जादुई श्लोकों का वर्णन किया गया है।
इस स्तोत्र का महत्व विष्णु पुराण में प्रकट हुआ है। देवी लक्ष्मी के इस रूप को हिंदू धर्म में बहुत शक्तिशाली माना जाता है। ऐसे कई भक्त हैं जो उन्हें आसानी से प्रसन्न करने के लिए रोजाना सुबह उनकी पूजा करते हैं।
इसके साथ ही गुप्त नवरात्रि के दसवें दिन ज्यादातर कमला देवी की पूजा की जाती है क्योंकि यह दिन कमला देवी को समर्पित है। जिन भक्तों ने कमला देवी को प्रसन्न किया है, वे उनकी कृपा से अपने जीवन में सब कुछ प्राप्त करते हैं। यदि आप उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको कमला स्तोत्रम का पूरी श्रद्धा के साथ पाठ करना चाहिए।
ओंकाररूपिणी देवि विशुद्धसत्त्वरूपिणी ।
देवानां जननी त्वं हि प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
तन्मात्रंचैव भूतानि तव वक्षस्थलं स्मृतम् ।
त्वमेव वेदगम्या तु प्रसन्ना भव सुंदरि ॥
देवदानवगन्धर्वयक्षराक्षसकिन्नरः ।
स्तूयसे त्वं सदा लक्ष्मि प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
लोकातीता द्वैतातीता समस्तभूतवेष्टिता ।
विद्वज्जनकीर्त्तिता च प्रसन्ना भव सुंदरि ॥
परिपूर्णा सदा लक्ष्मि त्रात्री तु शरणार्थिषु ।
विश्वाद्या विश्वकत्रीं च प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
ब्रह्मरूपा च सावित्री त्वद्दीप्त्या भासते जगत् ।
विश्वरूपा वरेण्या च प्रसन्ना भव सुंदरि ॥
क्षित्यप्तेजोमरूद्धयोमपंचभूतस्वरूपिणी ।
बन्धादेः कारणं त्वं हि प्रसन्ना भव सुंदरि ॥
महेशे त्वं हेमवती कमला केशवेऽपि च ।
ब्रह्मणः प्रेयसी त्वं हि प्रसन्ना भव सुंदरि ॥
चंडी दुर्गा कालिका च कौशिकी सिद्धिरूपिणी ।
योगिनी योगगम्या च प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
बाल्ये च बालिका त्वं हि यौवने युवतीति च ।
स्थविरे वृद्धरूपा च प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
गुणमयी गुणातीता आद्या विद्या सनातनी ।
महत्तत्त्वादिसंयुक्ता प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
तपस्विनी तपः सिद्धि स्वर्गसिद्धिस्तदर्थिषु ।
चिन्मयी प्रकृतिस्त्वं तु प्रसन्ना भव सुंदरि ॥
त्वमादिर्जगतां देवि त्वमेव स्थितिकारणम् ।
त्वमन्ते निधनस्थानं स्वेच्छाचारा त्वमेवहि ॥
चराचराणां भूतानां बहिरन्तस्त्वमेव हि ।
व्याप्यव्याकरूपेण त्वं भासि भक्तवत्सले ॥
त्वन्मायया हृतज्ञाना नष्टात्मानो विचेतसः ।
गतागतं प्रपद्यन्ते पापपुण्यवशात्सदा ॥
तावन्सत्यं जगद्भाति शुक्तिकारजतं यथा ।
यावन्न ज्ञायते ज्ञानं चेतसा नान्वगामिनी ॥
त्वज्ज्ञानात्तु सदा युक्तः पुत्रदारगृहादिषु ।
रमन्ते विषयान्सर्वानन्ते दुखप्रदान् ध्रुवम् ॥
त्वदाज्ञया तु देवेशि गगने सूर्यमण्डलम् ।
चन्द्रश्च भ्रमते नित्यं प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
ब्रह्मेशविष्णुजननी ब्रह्माख्या ब्रह्मसंश्रया ।
व्यक्ताव्यक्त च देवेशि प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
अचला सर्वगा त्वं हि मायातीता महेश्वरि ।
शिवात्मा शाश्वता नित्या प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
सर्वकायनियन्त्री च सर्वभूतेश्वरी ।
अनन्ता निष्काला त्वं हि प्रसन्ना भवसुन्दरि ॥
सर्वेश्वरी सर्ववद्या अचिन्त्या परमात्मिका ।
भुक्तिमुक्तिप्रदा त्वं हि प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
ब्रह्माणी ब्रह्मलोके त्वं वैकुण्ठे सर्वमंगला ।
इंद्राणी अमरावत्यामम्बिका वरूणालये ॥
यमालये कालरूपा कुबेरभवने शुभा ।
महानन्दाग्निकोणे च प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
नैऋर्त्यां रक्तदन्ता त्वं वायव्यां मृगवाहिनी ।
पाताले वैष्णवीरूपा प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
सुरसा त्वं मणिद्वीपे ऐशान्यां शूलधारिणी ।
भद्रकाली च लंकायां प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
रामेश्वरी सेतुबन्धे सिंहले देवमोहिनी ।
विमला त्वं च श्रीक्षेत्रे प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
कालिका त्वं कालिघाटे कामाख्या नीलपर्वत ।
विरजा ओड्रदेशे त्वं प्रसन्ना भव सुंदरि ॥
वाराणस्यामन्नपूर्णा अयोध्यायां महेश्वरी ।
गयासुरी गयाधाम्नि प्रसन्ना भव सुंदरि ॥
भद्रकाली कुरूक्षेत्रे त्वंच कात्यायनी व्रजे ।
माहामाया द्वारकायां प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
क्षुधा त्वं सर्वजीवानां वेला च सागरस्य हि ।
महेश्वरी मथुरायां च प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
रामस्य जानकी त्वं च शिवस्य मनमोहिनी ।
दक्षस्य दुहिता चैव प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
विष्णुभक्तिप्रदां त्वं च कंसासुरविनाशिनी ।
रावणनाशिनां चैव प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥
लक्ष्मीस्तोत्रमिदं पुण्यं यः पठेद्भक्सिंयुतः ।
सर्वज्वरभयं नश्येत्सर्वव्याधिनिवारणम् ॥
इदं स्तोत्रं महापुण्यमापदुद्धारकारणम् ।
त्रिसंध्यमेकसन्ध्यं वा यः पठेत्सततं नरः ॥
मुच्यते सर्वपापेभ्यो तथा तु सर्वसंकटात् ।
मुच्यते नात्र सन्देहो भुवि स्वर्गे रसातले ॥
समस्तं च तथा चैकं यः पठेद्भक्तित्परः ।
स सर्वदुष्करं तीर्त्वा लभते परमां गतिम् ॥
सुखदं मोक्षदं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिसंयुक्तः ।
स तु कोटीतीर्थफलं प्राप्नोति नात्र संशयः ॥
एका देवी तु कमला यस्मिंस्तुष्टा भवेत्सदा ।
तस्याऽसाध्यं तु देवेशि नास्तिकिंचिज्जगत् त्रये ॥
पठनादपि स्तोत्रस्य किं न सिद्धयति भूतले ।
तस्मात्स्तोत्रवरं प्रोक्तं सत्यं हि पार्वति ॥
॥ इति माँ कमला स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
अथातः संप्रवक्ष्यमि लक्ष्मीस्तोत्रमनुत्तम्म।
पठनात् श्रवणाद्यस्य नरो मोक्षमवाप्नुयात्।।
श्री महादेव जी बोले, हे पार्वती! अब अति उत्तम लक्ष्मी स्तोत्र कहता हूं, इसको पढ़ने या सुनने से मनुष्यों को मुक्ति प्राप्त होती है।
गुह्याद् गुह्यतरं पुण्यं सर्वदेवनमस्कृतम्।
सर्वमंत्रमयं साक्षाच्छृणु पर्वतनन्दिनी।।
हे पर्वतनन्दिनि! यह स्तोत्र गुह्य से गुह्यतर सर्वदेवों से नमस्कृत और सर्वमंत्रमयी है। श्रवण करो।
अनन्तरूपिणी लक्ष्मीरपारगुणसागरी।
अणिमादिसिद्धिदात्री शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे देवी लक्ष्मी! तुम अनन्तरूपिणी और गुणों का सागर हो। तुम्हीं प्रसन्न होकर अणिमादि सिद्धि प्रसाद देती हो। तुमको सिर झुकाकर प्रणाम करता हूं।
आपदुद्धारिणी त्वं हि आद्या शक्तिः शुभा परा।
आद्या आनन्ददात्री च शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे देवी! तुम्हीं प्रसन्न होकर अपने भक्तों का विपद से उद्धार करती हो। तुम्हीं कल्याणी हो। तुम्हीं आद्याशक्ति हो। तुम्हीं सबकी आदि हो एवं तुम्हीं आनन्ददायिनी हो। तुमको सिर झुकाकर प्रणाम करता हूं।
इन्दुमुखी इष्टदेवी इष्टमंत्रस्वरूपीणी।
इच्छामयी जगन्मातः शिरसा प्रणमाम्यहम्।
हे देवी जगन्माता लक्ष्मी! तुम्हीं अभीष्ट प्रदान करती हो। तुम्हारा मुख पूर्ण चन्द्रमा के समान प्रकाशमान है। तुम्हीं इष्ट मंत्र स्वरूपीणी और इच्छामयी हो। तुमको सिर झुकाकर प्रणाम करता हूं।
उमा उमापतेस्त्वन्तु ह्यत्कण्ठाकुलनाशिनी।
उर्व्वीश्वरी जगन्मातार्लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।।
हे देवी लक्ष्मी! तुम्हीं उमापति की उमा हो। तुम्हीं पृथ्वी की ईश्वरी हो। तुमको नमस्कार करता हूं।
ऐरावतपतिपूज्या ऐश्वर्याणां प्रदायिनी।
औदार्य्यगुणसम्पन्ना लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।।
हे देवी! तुम्हीं ऐरावतपति देवराज इन्द्र की वन्दनीय हो। तुम्हीं प्रसन्न होने पर सम्पूर्ण ऐश्वर्य प्रदान कर सकती हो। तुम्हीं उदार गुणों से विभूषित हो। तुमको नमस्कार करता हूं।
कृष्णवक्षः स्थिता देवि कलिकल्मषनाशिनी।
कृष्णचित्तहरा कर्त्री शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे देवी! तुम सदा श्रीकृष्ण के वक्ष स्थल में विराजमान रहती हो। तुम्हारे बिना और कोई भी कलिकल्मष को ध्वंस करने में समर्थ नहीं है। तुमने ही श्रीकृष्ण का चित्त हरण किया है। अतः केवल सर्वकारिणी तुम्हीं हो। तुमको सिर झुकाकर प्रणाम करता हूं।
खंजनाक्षी खंजनासा देवि खेदविनाशिनी।
खंजरीटगतिश्चैव शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे देवी् तुम खंजन के नेत्र के समान सुनयना हो। तुम्हारी नासिका गरुण की नासिका के समान मनोहर है। तुम आश्रितों के क्लेश का विनाश करती हो। तुम्हारी गति खंजरीट के समान है। मैं तुमको सिर झुकाकर प्रणाम करता हूं।
गोविन्दवल्लभा देवी गन्धर्व्वकुलयावनी।
गोलोकवासिनी मातः शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे जननी! तुम्हीं बैकुण्ठपति गोविन्द की प्रियतमा हो। तुम्हारे अनुग्रह से ही गन्धर्वकुल पवित्र हुआ है। तुम्हीं सर्वदा गोलोकधाम में विहार करती हो। मैं तुमको सिर झुकाकर प्रणाम करता हूं।
ज्ञानदा गुणदा देवि गुणाध्यक्षा गुणाकरी।
गन्धपुष्पधरा मातः शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे मातः एकमात्र तुम्हीं ज्ञान प्रदान करने वाली हो। तुम्हीं एकमात्र गुण की खान हो। तुम्हीं गुणों की अध्यक्ष हो। तुम्हीं गुणों की आधार हो। तुम्हीं गन्धपुष्प द्वारा निरन्तर शोभित रहती हो। मैं तुमको सिर झुकाकर प्रणाम करता हूं।
घनश्यामप्रिया देवि घोरसंसारतारिणी।
घोरपापहरा चैव शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे कमले! तुम्हीं घनश्याम की प्रियतमा हो। एकमात्र तुम्हीं घोरतम संसार सागर से रक्षा कर सकती हो। तुम्हारे अतिरिक्त और कोई भी भयंकर पापों से उद्धार करने में समर्थ नहीं है। अतः मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
चतुर्व्वेदमयी चिन्त्या चित्तचैतन्यदायिनी।
चतुराननपूज्या च शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे देवी! तुम्हीं चतुर्वेदमयी हो। एकमात्र तुम्हीं योगियों का ध्यान हो। तुम्हारे प्रसाद से ही चित्त में चैतन्यता का संचार होता है। जगतपति चतुरानन भी तुम्हारी पूजा करते हैं। अतएव हे जननी! मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
चैतन्यरूपिणी देवि चन्द्रकोटिसमप्रभा।
चन्द्रार्कनखरज्योतिर्लक्ष्मि देवि नमाम्यहम्।।
हे देवी! तुम्हीं चैतन्यरूपिणी हो। तुम्हारे देह की कान्ति करोड़ों चन्द्रमाओं के समान रमणीय है। तुम्हारे चरणों की दीप्ति चन्द्र सूर्य की कान्ति से भी अधिक देदीप्यमान है। मैं तुमको नमस्कार करता हूं।
चपला चतुराध्यक्षी चरमे गतिदायिनी।
चराचरेश्वरी लक्ष्मि शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे देवी लक्ष्मी! तुम सदा एक स्थान में वास नहीं करती हो, इसलिए तुम्हारा चपला नाम हुआ है। अन्तकाल में एकमात्र तुम्हीं गति देती हो। तुम्हीं चराचर जीवों की अधीश्वरी हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
छत्रचामरयुक्ता च छलचातुर्य्यनाशिनी।
छिद्रौघहारिणी मातः शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे जननी! तुम्हीं शोभायमान छत्र और चामर से परम शोभा पाती हो। छल और चतुरता के प्रभाव का नाश करने वाली हो। तुम्हीं पाप समूह को नष्ट करती हो। अतः मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
जगन्माता जगत्कर्त्री जगदाधाररूपिणी।
जयप्रदा जानकीं च शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे जननी! तुम्हीं जगत की जननी हो। तुम्हीं जगत का एकमात्र आधार हो। तुम जयदात्री हो। तुम्हीं जानकी रूप से पृथ्वी पर अवतीर्ण हुई हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
जानकीशप्रिया त्वं हि जनकोत्सवदायिनी।
जीवात्मनां च त्वं मातः शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे जननी! तुम जानकी, रघुवर की सहधर्मिणी हो। तुम्हीं जनक को आनन्द देने वाली हो। तुम्हीं सर्व जीवों आत्मस्वरूपा हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
झिंजीरवस्वना देवि झंझावातनिवारिणी।
झर्झरप्रियवाद्या च शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे देवी! तुम्हारे कण्ठ का स्वर झिंजीरव के समान मधुर है। तुम्हारे अनुग्रह से झंझा वर्षायुक्त वायु के हाथ से सहज में ही रक्षा लाभ होता है। तुम गोवर्द्धनादि पर्वतों में झर्झर वाद्य में अत्यन्त हो, अतः मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
अर्थप्रदायिनी त्वं हि त्वंच ठकाररूपिणी।
ढक्कादिवाद्यप्रणया डम्फवाद्यविनोदिनी।।
डमरूप्रणया मातः शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे जननी! एकमात्र तुम्हीं धन प्रदान करती हो। तुम्हीं ठकाररूपिणी हो। डमरू और डम्फ वाद्य से तुमको अत्यन्त प्रसन्नता होती है। ढक्कादि वाद्य तुम्हें प्रीतिकर है। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
तप्तकांचनवर्णाभा त्रैलोक्यलोकतारिणी।
त्रिलोकजननी लक्ष्मि शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे देवी लक्ष्मी! तुम्हारा वर्ण तपे हुए कंचन के समान उज्जव्ल है। तुम त्रैलोक्यवासी जीवों की रक्षा करती हो। तुम्हीं त्रिलोक को उत्पन्न करने वाली हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
त्रैलोक्यसुंदरी त्वं हि तापत्रयनिवारिणी।
त्रिगुणधारिणी मातः शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे जननी! तुम त्रिभुवन में परम रूपवती हो। तुम्हीं तीनों तापों का नाश करती हो। तुम्हीं सत्व, रज और तमोगुण धारिणी हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
त्रैलोक्यमंगला त्वं हि तीर्थमूलपदद्वया।
त्रिकालज्ञा त्राणकर्त्री शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे देवी! तुम्हीं तीनों लोकों का मंगल विधान करती हो। तुम्हारे चरण कमलों में सम्पूर्ण तीर्थ विराजमान रहते हैं। तुम भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों को जानती हो। तुम्हीं जीवों की रक्षा किया करती हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
दुर्गतिनाशिनी त्वं हि दारिद्रयापद्विनाशिनी।
द्वारकावासिनी मातः शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे जननी! तुम आपदा, दुर्गति और दरिद्रों की दरिद्रता, आपदा को दूर करती हो। तुम्हीं द्वारकापुरी में विराजमान रहती हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
देवतानां दुराराध्यां दुखशोकविनाशिनी।
दिव्याभरणभूषांगी शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे देवी! देवता भी बहुत तपस्यादि बहुत से कष्ट से तुमको प्राप्त करते हैं। तुम प्रसन्न होने पर सम्पूर्ण शोकों को नष्ट कर देती हो। तुम दिव्य आभूषणों से शोभायमान हो रही हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
दामोदरप्रिया त्वं हि दिव्ययोगप्रदर्शिनी।
दयामयी दयाध्यक्षी शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे जननी! तुम दामोदर की प्रिया हो। तुम्हारे प्रसाद से ही दिव्य योग प्राप्त किया जा सकता है। तुम्हीं दयामयी हो। तुम ही दया की अधिष्ठात्री देवी हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
ध्यानातीता धराध्यक्षा धनधान्यप्रदायिनी।
धर्म्मदा धैर्यदा मातः शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे माता! तुम ध्यान से भी अतीत हो। तुम्हीं पृथ्वी की अध्यक्षा हो। तुम्हीं भक्तों को धन धान्यादि प्रदान करती हो। तुम्हीं धर्म और धैर्य की शक्ति देती हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
नवगोरोचना गौरी नन्दनन्दनगेहिनी।
नवयौवनचार्वंगी शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे देवी! तुम नवीन गोरोचन के समान गौरवर्णा हो। तुम्हीं नन्दनन्दन की प्रियतमा हो। तुम्हीं नवयौवना के कारण कान्तिप्रदा हो। मैं तुमको सिर झुकाकर प्रणाम करता हूं।
नानारत्नादिभूषाढ्या नानारत्नप्रदायिनी।
नितम्बिनी नलिनाक्षी लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।।
हे देवी! तुम अनेक प्रकार के रत्नादि आभूषणों से विभूषित होकर परम शोभा को पाती हो। तुम्हीं प्रसन्न होने पर नाना रत्नादि प्रदान करती हो। तुम्हीं विशाल नितम्ब वाली हो। तुम्हारे नेत्र कमल के समान सुन्दर है। मैं सिर झुकाकर तुमको नमस्कार करता हूं।
निधुवनप्रेमानन्दा निराश्रयगतिप्रदा।
निर्व्विकारा नित्यरूपा लक्ष्मिदेवि नमोऽस्तुते।।
हे लक्ष्मी देवी! तुम विकाररहित और नित्यरूपिणी हो। त्रिभुवन में विहार करने से तुमको प्रेमानन्द की प्राप्ति होती है। तुम्हीं निराश्रय को पार लगा देती हो। तुमको नमस्कार है।
पूर्णानन्दमयी त्वं हि पूर्णब्रह्मसनातनी।
परा शक्तिः परा भक्तिर्लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।
हे देवी कमले! तुम पूर्णानन्दमयी हो। तुम्हीं पूर्ण ब्रह्मस्वरूपिणी हो। तुम्हीं परम शक्ति हो। तुम्हीं परम भक्तिस्वरूपा हो। तुमको नमस्कार करता हूं।
पूर्णचन्द्रमुखी त्वं हि परानन्दप्रदायिनी।
परमार्थप्रदा लक्ष्मि शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे देवी! तुम्हारी देह पूर्ण चन्द्रमा के समान शोभायमान है। तुम्हीं परमानन्द और परमार्थ का दान देती हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
पुण्डरीकाक्षिणी त्वं हि पुण्डरीकाक्षगेहिनी।
पद्मरागधरा त्वं हि शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
तुम्हारे नेत्र कमल के समान सुन्दर है। तुम्हीं पुण्डरीकाक्ष की गेहिनी हो। तुम्हीं पद्मरागमणि धारण करके परम शोभा को प्राप्त होती हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
पद्मा पद्मासना त्वं हि पद्ममालाविधारिणी।
प्रणवरूपिणी मातः शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे माता! तुम पद्मासन पर विराजमान रहती हो। इसी कारण तुम्हारा पद्मा नाम प्रसिद्ध हुआ है। तुम्हारे गले में मनोहर पद्ममाला सुन्दरता से पड़ी रहती है। तुम्हीं ॐकार रूपिणी हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
फुल्लेन्दुवदना त्वं हि फणिवेणिविमोहिनी।
फणिशायिप्रिया मातः शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे माता! तुम्हारा मुख चन्द्रमा की किरणों के समान मनोहर है। तुम्हारे सिर की वेणी ने फणि के समान लम्बायमान होकर परम शोभा धारण कर रखी है। तुम्हीं क्षीरादसागर में शेष शय्या पर शयन करने वाले हरि की गृहिणी हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
विश्वकर्त्री विश्वभर्त्री विश्वत्रात्री विश्वेश्वरी।
विश्वाराध्या विश्वबाह्या लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।।
हे लक्ष्मि देवी! तुम्हीं संसार की सृष्टि करने वाली हो। तुम्हीं विश्व का पालन करने वाली हो। तुम्हीं केवल सम्पूर्ण विश्व की ईश्वरी हो। तुम्हीं विश्ववासी जीवों की पूजनीया हो। तुम्हीं विश्व में सर्वत्र रहती हो, किन्तु तो भी तुम जगत में लिप्त नहीं हो। तुम्हीं विश्व के बाहर स्थित हो। तुम्हीं विश्व के भीतर स्थित हो। तुमको नमस्कार करता हूं।
विष्णुप्रिया विष्णुशक्तिर्बीजमंत्रस्वरूपिणी।
वरदा वाक्यसिद्धा च शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
तुम्हीं विष्णु की प्रिया हो। तुम्हीं विष्णु की एकमात्र शक्ति हो। तुम्हीं बीजमंत्र स्वरूपिणी हो। तुम्हीं वर का दान देने वाली हो। तुम्हीं वाक्सिद्धियुक्त हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
वेणुवाद्यप्रिया त्वं हि वंशीवाद्यविनोदिनी।
विद्युद्गौरी महादेवि लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।
हे महादेवी! ले लक्ष्मी देवी! तुम विद्युत के समान गौरवर्णा हो। तुम्हें वेणु का वाद्य अति प्रिय है। तुम वंशी की धुन से विनादिनी हो जाती हो। तुमको सिर झुकाकर नमस्कार करता हूं।
भुक्तिमुक्तिप्रदा त्वं हि भक्तानुग्रहकारणी।
भवार्णवत्राणकर्त्री लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।।
हे लक्ष्मी देवी! तुम भुक्ति और मुक्ति को प्रदान करती हो। तुम भक्तों के प्रति अनुग्रह रखती हो। तुम्हीं आश्रितों को भवसागर से पार करती हो। तुमको सिर झुकाकर नमस्कार करता हूं।
भक्तप्रिया भागीरथी भक्तमंगलदायिनी।
भयदा भयदात्री च लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।।
हे लक्ष्मि देवी! तुम भक्तों के प्रति आन्तरिक स्नेह रखती हो। तुम्हीं भागीरथी गंगास्वरूपिणी हो। तुम भक्तों का कल्याण करती हो। तुम्हीं दुष्टों का नाश करती हो। तुम शरणागतों को अभय करती हो। तुमको नमस्कार करता हूं।
मनोऽभीष्टप्रदा त्वं हि महामोहविनाशिनी।
मोक्षदा मानदात्री च लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।।
हे लक्ष्मी देवी! तुम कामना पूर्ण करती हो। तुम मोह का विनाश करती हो। तुम्हीं मोक्ष देती हो। तुम सम्मान देती हो। तुमको नमस्कार करता हूं।
महाधन्या महामान्या माधवस्यात्ममोहिनी।
मोक्षदा मानदात्री च लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।
हे लक्ष्मी देवी! तुम्हीं महाधन्या हो। तुम महा माननीय हो। तुमने ही माधव को मोहित किया हुआ है। जो बहुत बोलने वाले अर्थात चुगलखोर हैं। तुम उनका नाश करती हो। तुमको नमस्कार करता हूं।
यौवनपूर्णसौन्दर्या योगमाया तथेश्वरी।
युग्मश्रीफलवृक्षा च लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।।
हे लक्ष्मी देवी! तुम पूर्ण यौवन को धारण करके सुन्दर लग रही हो। तुम्हीं योगमाया हो। तुम्हीं योग की ईश्वरी हो। तुम्हारे वक्ष पर दो नारियल के समान ऊँचे दो स्तन शोभा पा रहे हैं। तुमको नमस्कार करता हूं।
युग्मांगदविभूषाढ्या युवतीनां शिरोमणिः।
यशोदासुतपत्नी च लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।।
हे लक्ष्मी देवी! तुम्हारे दोनों बाहुओं में दो बाजूबन्द विद्यमान हैं। तुम्हीं युवतियों की शिरोमणि हो। तुम्हीं यशोदानन्दन की पत्नी हो। तुमको नमस्कार करता हूं।
रूपयौवनसम्पन्ना रत्नालंकारधारिणी।
राकेन्दुकोटिसौन्दर्या लक्ष्मि देवी नमोऽस्तुते।।
हे लक्ष्मी देवी! तुम रूप एवं यौवन से सम्पन्न हो। तुम्हीं रत्न अलंकार से विभूषित हो। तुम्हारी कान्ति करोड़ चन्द्रमा से भी उज्जवल है। तुमको नमस्कार करता हूं।
रमा रामा रामपत्नी राजराजेश्वरी तथा।
राज्यदा राज्यहन्त्री च लक्ष्मिदेवि नमोऽस्तुते।।
हे लक्ष्मी देवी! तुम्हारा ही नाम रमा और रामा है। तुम्हीं राम की पत्नी हो। तुम्हीं राज राजेश्वरी हो। तुम्हीं राज्य प्रदान करती हो। तुम्हीं राज्य का नाश करती हो। तुमको नमस्कार करता हूं।
लीलालावण्यसम्पन्ना लोकानुग्रहकारिणी।
ललना प्रीतिदात्री च लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।।
हे जननी! तुम्हीं लीला और लावण्य से सम्पन्न हो। तुम्हीं लोकों पर अनुग्रह करती हो। स्त्रीजन तुम्हारे द्वारा परम प्रीति को प्राप्त करती हैं। मैं तुमको नमस्कार करता हूं।
विद्याधरी तथा विद्या वसुदा त्वन्तु वन्दिता।
विन्ध्याचलवासिनी च लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।।
हे लक्ष्मि देवी! तुम्हीं विद्या हो। तुम्हीं विद्याधारी हो। तुम्हीं वसुदा हो। तुम्हीं वंदनीय हो। तुम्हीं विन्ध्यवासिनी रूप से विन्ध्याचल में निवास करती हो। तुमको नमस्कार करता हूं।
शुभ कांचनगौरांगी शंखकंकणधारिणी।
शुभदा शीलसम्पन्ना लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।।
हे लक्ष्मी देवी! तुम शुभ कंचन के समान गौर वर्णा हो। तुमने अपने हाथ में शंख और कंकण धारण किये हैं। तुम शुभदायक हो। तुम अत्यन्त शीलवती हो। तुमको नमस्कार करता हूं।
षट्चक्रभेदिनी त्वं हि षडैश्वर्य्यप्रदायिनी।
षोडसी वयसा त्वन्तु लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।।
हे लक्ष्मी देवी! तुम्हीं षड्चक्रभेदिनी हो। तुम्हीं छः प्रकार का ऐश्वर्य प्रदान करती हो। तुम्हीं सोलह वर्ष की अवस्था वाली नवयुवती हो। तुमको नमस्कार करता हूं।
सदानन्दमयी त्वं हि सर्वसम्पत्तिदायिनी।
संसारतारिणी देवि शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे देवी! तुम सर्वदा आनन्दमयी हो। तुम्हीं सर्व सम्पत्ति देती हो। तुम्हीं संसार से पार करती हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
सुकेशी सुखदा देवि सुंदरी सुमनोरमा।
सुरेश्वरी सिद्धिदात्री शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे देवी! तुम्हारे केश मनोहर हैं। तुम सुख देती हो। तुम सुन्दरी और मनोमोहिनी हो। तुम्हीं देवताओं की ईश्वरी हो। तुम सिद्धि प्रदायिनी हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
संर्वसंकटहन्त्री त्वं सत्यसत्वगुणन्विता।
सीतापतिप्रिया देवि शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे देवी! तुम सम्पूर्ण संकट दूर करती हो। तुम सत्य नारायण हो। तुम सत्वगुणशालिनी हो। तुम ही सीतापति रामचन्द्र की प्रिय पत्नी हो। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
हेमांगिनी हास्यमुखी हरिचित्तविमोहिनी।
हरिपादप्रिया देवि शिरसा प्रणमाम्यहम्।।
हे देवी! तुम पिघले कांच के समान गौरवर्णा हो। तुम सर्वदा प्रसन्न रहती हो। तुमने हरि का चित्त मोहित किया हुआ है। हरि के चरणों में ही तुम्हारा अत्यन्त अनुराग है। मैं सिर झुकाकर तुमको प्रणाम करता हूं।
क्षेमंकरी क्षमादात्री क्षौमवासोविधारिणी।
क्षीणमध्या च क्षेत्रांगी लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते।।
हे लक्ष्मी देवी! तुम कल्याण करने वाली हो। तुम क्षमादात्री हो। क्षौमवस्त्र को धारण करती हो। तुम्हारी कमर ने पतली होने से परम शोभा दिखा रही है। तुम्हारे अंग में सम्पूर्ण तीर्थ और क्षेत्र विद्यमान रहते हैं। तुमको नमस्कार करता हूं।
अकारादि क्षकारान्तं लक्ष्मीदेव्याः स्तव शुभम।
पठितव्यं प्रयत्नेन त्रिसन्ध्यंच दिने दिने।।
श्री महादेव जी बोले- हे पार्वती! तुम्हारे प्रश्नानुसार अकारादि से क्षकारान्त वर्ण वाला लक्ष्मी स्तोत्र वर्णन किया है। इस कल्याणकारक स्तोत्र का प्रतिदिन तीनों संध्याओं में प्रयास करके पाठ करना चाहिए।
पूजनीया प्रयत्नेन कमला करुणामयी।
वांछाकल्पलता साक्षात् मुक्ति भुक्ति प्रदायिनी।।
इसे पूजना चाहिए क्योंकि यह कमला देवी करुणा से परिपूर्ण हैं। यह अभिलाषाएं पूर्ण किया करती हैं। यही साक्षात भक्ति एवं मुक्ति देने वाली हैं।
इदं स्तोत्र पठेद्यस्तु श्रृणुयात् श्रावयेदपि।
इष्टसिद्धिर्भवेत्तस्य सत्यं सत्यं हि पार्वती।।
जो पुरूष इस लक्ष्मी स्तोत्र को पढ़ते हैं या सुनते हैं या दूसरे मनुष्य को सुनाते हैं। हे पार्वती! उनके सम्पूर्ण मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। इसमें सन्देह नहीं करना।
इदं स्तोत्रम् महापुण्यं यः पठेद्भक्तिसंयुतः।
तंच दृष्टवा भवेन्मको वादी सत्यं न संशयः।।
हे गौरी! जो साधक भक्ति सहित इस पवित्र स्तोत्र का पाठ करते हैं, उनके दर्शन मात्र से ही वादी मूकता को प्राप्त होता है। इसमें सन्देह नहीं।
श्रृणुयाछ्रवयेद्यस्तु पठेद्वा पाठयेदपि।
राजानौ वशमायान्ति तं दृष्टवा गिरिनन्दिनी।।
हे गिरिनन्दिनी! जो इस स्तोत्र को सुनते हैं। जो दूसरों को सुनाते हैं। जो स्वयं पढा करते हैं। जो दूसरों को पढ़ाते हैं। उनके दर्शन मात्र से ही राजा लोग वशीभूत होते हैं।
तं दृष्टवा दुष्टसंघाश्च पलायन्ते दिशो दश।
भूतप्रेतग्रहा यक्षा राक्षसा पन्नगादयः।।
विद्रवन्ति भयार्ता वै स्तोत्रस्यापि च कीर्त्तनात्।।
जो पुरूष इस लक्ष्मी स्तोत्र का कीर्तन करते हैं, उनके दर्शन मात्र से ही दुष्टगण दशों दिशा में भाग जाते हैं। भूत, प्रेत, ग्रह, यक्ष, राक्षस, सर्प इत्यादि भी उससे डरकर अन्यत्र चले जाते हैं। इसमें सन्देह नहीं करना।
सुराश्च ह्यसुराश्चैव गंधर्वकिन्नरादयः।
प्रणमन्ति सदा भक्त्या तं दृष्टवा पाठकं मुदा।।
जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करते हैं, देवता, दानव, गन्धर्व, किन्नर उसको देखते ही आनन्द और भक्ति सहित प्रणाम करते हैं।
धनार्थी लभते चार्थं पुत्रार्थी च सुतं लभेत्।
राज्यार्थी लभते राज्यं स्तवराजस्य कीर्त्तनात्।।
ब्रह्म हत्या, सुरापान, चोरी, गुरु स्त्रीगमन, महापातक, उपपातक जैसे पापों से इस स्तव के कीर्तन करने मात्र के प्रभाव से ही छुटकारा मिल जाता है।
गद्यपद्यमयी वाणी मुखात्तस्य प्रजायते।
अष्टसिद्धिमवाप्नेति लक्ष्मीस्तोत्रस्य कीर्तनात्।।
इस लक्ष्मी स्तोत्र के कीर्तन करने से आपने आप ही मुख से गद्य पद्यमयी वाणी प्रादुर्भूत हुआ करती है। इसका कीर्तन करने वाला आठ प्रकार की सिद्धि को प्राप्त किया करता है।
वन्ध्या चापि लभेत् पुत्रं गर्भिणि प्रसवेत्सुतम्।
पठनात्स्मरणात् सत्यं वच्मि ते गिरिनन्दिनी।।
हे पर्वतनन्दिनी! तुमसे सत्य ही कहता हूं। इस स्तोत्र के पढ़ने या स्मरण करने मात्र से ही वंध्या पुत्र प्राप्त करती है, और गर्भवती स्त्री को उत्तम पुत्र प्राप्त होता है।
भूर्ज्जपत्रे समालिख्य रोचनाकुंकुमेन तु।
भक्त्या संपूजयेद्यस्तु गन्धपुष्पाक्षतैस्तथा।।
धारयेदक्षिणे बाहौ पुरुषः सिद्धिकांक्षया।
योषिद्वामभुजे धृत्वा सर्व्वसौख्यमयी भवेत्।।
जो पुरुष लक्ष्मी की कामना करते हैं, वे भोजपत्र के ऊपर गोरोचन और कुंकुम द्वारा इस स्तव को लिखकर गन्धपुष्पादि से भक्ति के साथ पूजा अर्चना करके दाहिने बाहु में धारण करे। स्त्रियां भी बाईं भुजा में धारण करने से सर्व सुखों से सुखी हो सकती हैं।
विषं निर्विषतां याति अगिनर्याति च शीतताम्।
शत्रवो मित्रतां यान्ति स्तवस्यास्य प्रसादतः।।
इस स्तवराज के प्रसाद से विष में निर्विषता, अग्नि में शीतलता और शत्रुओं में मित्रता प्राप्त होती है।
बहुना किमिहोक्तेन स्तवस्यास्य प्रसादतः।
वैकुण्ठे च वसेन्नित्यं सत्यं वच्मि सुरेश्वरि।।
हे सुरेश्वरी! इसका महात्म्य और अधिक क्या वर्णन करूं? अन्त समय नित्य दिवस वैकुण्ठ में वास होता है। इसमें सन्देह नहीं करना।
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