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5 months ago
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“तुम्हारे बच्चों का फ़र्ज़ है कि जब वे दो साल की उम्र में आएं तो दुआ करें और जब वे दस साल की उम्र में आएं तो उन्हें मना करने पर पीटें और उनके बिस्तर अलग कर दें।”
इस हदीस में रसूलुल्लाह बच्चों के माता-पिता को सिखा रहे हैं कि वे अपने बच्चों को सात साल की उम्र में दिखाकर खुदा की मिन्नत करने के काबिल बनाने की कोशिश करें।
अगर दस साल की उम्र में नमाज़ न पढ़ें तो उनके घर वाले उन्हें क़त्ल कर दें और उन्हें मना कर दें और उन्हें नमाज़ का दीवाना बना दें और एक दशक की उम्र बाल्यावस्था के क़रीब हो चुकी है, इसलिए उन्हें ऐसा न करने दें एक साथ आराम करो।
नमाज छोड़कर कुछ एलान किया जाता है
हज़रत जाविरजी0 चित्रित करते हैं कि रसूलुल्लाह नमक ने कहा: विश्वास और हैक के बीच का अंतर अनुरोध को छोड़ना है। इसका तात्पर्य यह है कि अनुरोध इस्लाम और दूसरों के बीच एक दीवार की तरह मौजूद है।
कुल मिलाकर, भगवान के सामने आत्मसमर्पण करना एक मुसलमान के लिए कुरु में आने के अनुरूप है। हज़रत बुरिदा ने चित्रित किया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा: “हमारे और पाखंडियों के बीच सौदा नमाज़ है, जिसने भी नमाज़ छोड़ी उसने कुफ़ किया।”
इस हदीस की अहमियत यह है कि बदमाशों में सदभाव का अनुभव होता है, उन्हें मारा नहीं जाता और उनके साथ मुसलमानों जैसा व्यवहार किया जाता है।
तो इसके पीछे तर्क यह है कि वे दुआ करते हुए तिमाज पढ़ते हैं और उनकी फरमाइश मानो मुसलमानों के बीच एक समझौता है जिससे धोखेबाजों के जान माल को मुसलमानों के ब्लेड और हमले से सुरक्षित रखा जाता है।
जिसने नमाज़ छोड़ी, उसने अपना कफ़ समझाया। मुस्लिम भाईयो! सोचिए कितनी घबराहट है कि नमाज़ छोड़ना कफ़ का बयान है।
हज़रत अब्दुल्ला कनस्तर शकरिक राह0 का वर्णन है: “सहवा किराम रज़ी0 ने दुआ के अलावा किसी भी कर्म को आत्मसमर्पण करने के लिए कुफ़ के रूप में नहीं सोचा था। तथ्य यह है कि रसूलुल्लाह सल्ल0 इसे चित्रित करते हैं
इब्न हजरत उमर वर्णन करते हैं, “जो कोई भी याचिका छोड़ देता है, उसके लिए दायित्व (अल्लाह की क्षमा की तलाश) समाप्त हो जाता है।
रसूलुल्लाह सल्ल0 ने हज़रत अबुर्जी0 से कहा: “जिस व्यक्ति के पास उसका असर रह गया है, शायद उसका घर और संपत्ति लूट ली गई है।
हज़रत बुरिदा रज़ी 2 में दर्शाया गया है कि रसूलुल्लाह सल्ल0 ने कहा: “जिस व्यक्ति ने नमाज़ अत्र छोड़ दी, उसके कर्म शून्य हो जाते हैं।
नमाज़ की कुछ शर्ते हैं। जिनका पूरा किये बिना नमाज़ नहीं हो सकती या सही नहीं मानी जा सकती। कुछ शर्तो का नमाज़ के लिए होना ज़रूरी है, तो कुछ शर्तो का नमाज़ के लिए पूरा किया जाना ज़रूरी है। तो कुछ शर्तो का नमाज़ पढ़ते वक्त होना ज़रूरी है, नमाज़ की कुल शर्ते कुछ इस तरह से है।
ख़याल रहे की पाक होना और साफ होना दोनों अलग अलग चीज़े है। पाक होना शर्त है, साफ होना शर्त नहीं है। जैसे बदन, कपडा या जमीन नापाक चीजों से भरी हुवी ना हो. धुल मिट्टी की वजह से कहा जा सकता है की साफ़ नहीं है, लेकिन पाक तो बहरहाल है।
१. बदन का पाक होना
– नमाज़ पढने के लिए बदन पूरी तरह से पाक होना ज़रूरी है। बदन पर कोई नापाकी लगी नहीं होनी चाहिए. बदन पर कोई गंदगी लगी हो या नापाकी लगी हो तो वजू या गुस्ल कर के नमाज़ पढनी चाहिए।
२. कपड़ो का पाक होना
– नमाज़ पढने के लिए बदन पर पहना हुआ कपडा पूरी तरह से पाक होना ज़रूरी है। कपडे पर कोई नापाकी लगी नहीं होनी चाहिए. कपडे पर कोई गंदगी लगी हो या नापाकी लगी हो तो कपडा धो लेना चाहिए या दूसरा कपडा पहन कर नमाज़ पढ़ लेनी चाहिए।
३. औरत नमाज़ पढने की जगह का पाक होना
– नमाज़ पढने के लिए जिस जगह पर नमाज पढ़ी जा रही हो वो जगह पूरी तरह से पाक होना ज़रूरी है। जगह पर अगर कोई गंदगी लगी हो या नापाकी लगी हो तो जगहधो लेनी चाहिए या दूसरी जगह नमाज़ पढ़ लेनी चाहिए।
४. बदन के सतर का छुपा हुआ होना
– नाफ़ के निचे से लेकर घुटनों तक के हिस्से को मर्द का सतर कहा जाता है। नमाज़ में मर्द का यह हिस्सा अगर दिख जाये तो नमाज़ सही नहीं मानी जा सकती.
५. नमाज़ का वक्त होना
– कोई भी नमाज़ पढने के लिए नमाज़ का वक़्त होना ज़रूरी है. वक्त से पहले कोई भी नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती और वक़्त के बाद पढ़ी गयी नमाज़ कज़ा नमाज़ मानी जाएगी।
६. किबले की तरफ मुह होना
– नमाज़ क़िबला रुख होकर पढ़नी चाहिए। मस्जिद में तो इस बारे में फिकर करने की कोई बात नहीं होती, लेकिन अगर कहीं अकेले नमाज़ पढ़ रहे हो तो क़िबले की तरफ मुह करना याद रखे।
७. नमाज़ की नियत यानि इरादा करना
– नमाज पढ़ते वक़्त नमाज़ पढ़ें का इरादा करना चाहिए।
नमाज़ के लिए वजू शर्त है। वजू के बिना आप नमाज़ नहीं पढ़ सकते। अगर पढेंगे तो वो सही नहीं मानी जाएगी। वजू का तरीका यह है की आप नमाज़ की लिए वजू का इरादा करे। और वजू शुरू करने से पहले बिस्मिल्लाह कहें. और इस तरह से वजू करे।
यह वजू का तरीका है। इस तरीके से वजू करते वक्त हर हिस्सा कम से कम एक बार या ज़्यादा से ज़्यादा तीन बार धोया जा सकता है। लेकिन मसाह सिर्फ एक ही बार करना है। इस से ज़्यादा बार किसी अज़ाको धोने की इजाज़त नहीं है, क्योंकि वह पानी की बर्बादी मानी जाएगी और पानी की बर्बादी करने से अल्लाह के रसूल ने मना किया है।
अगर आपने अपने बीवी से सोहबत की है, या फिर रात में आपको अहेतलाम हुआ है, या आपने लम्बे अरसे से नहाया नहीं है तो आप को गुस्ल करना ज़रूरी है। ऐसी हालत में गुस्ल के बिना वजू नहीं किया सकता, गुस्ल का तरीका कुछ इस तरह है।
यह गुस्ल का तरीका है। याद रहे ठीक वजू की तरह गुस्ल में भी बदन के किसी भी हिस्से को ज़्यादा से ज़्यादा ३ ही बार धोया जा सकता है।
क्योंकि पानी का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल इस्लाम में गैर पसंदीदा अमल माना गया है।
बिगैर ज़बान हिलाए दिल में इस तरह निय्यत कीजिये कि मैं पाकी हासिल करने के लिये गुस्ल करता हूं।
पहले दोनों हाथ पहुंचों तक तीन तीन बार धोइये, इस्तिन्जे की जगह धोइये ख़्वाह नजासत हो या न हो, फिर जिस्म पर अगर कहीं नजासत हो तो उस को दूर कीजिये फिर नमाज़ का सा वुज़ू कीजिये मगर पाउं न धोइये, हां अगर चौकी वगैरा पर गुस्ल कर रहे हैं तो पाउं भी धो लीजिये फिर बदन पर तेल की तरह पानी
चुपड़ लीजिये, खुसूसन सर्दियों में, (इस दौरान साबुन भी लगा सकते हैं) फिर तीन बार सीधे कन्धे पर पानी बहाइये,
फिर तीन बार उल्टे कन्धे पर, फिर सर पर और तमाम बदन पर तीन बार फिर गुस्ल की जगह से अलग हो जाइये, अगर वुज़ू करने में पाउं नहीं धोए थे तो अब धो लीजिये नहाने में क़िब्ला रुख न हों, तमाम बदन पर हाथ फैर कर मल कर नहाइये ।
ऐसी जगह नहाएं कि किसी की नज़र न पड़े अगर येह मुम्किन न हो तो मर्द अपना सित्र (नाफ़ से ले कर दोनों गुठनों समेत) किसी मोटे कपड़े से छुपा ले, मोटा कपड़ा न हो तो हस्बे ज़रूरत दो या तीन कपड़े लपेट ले क्यूं कि बारीक कपड़ा होगा तो पानी से बदन पर चिपक जाएगा और घुटनों या रानों वगैरा की रंगत जाहिर होगी।
नमाज़ की नियत का तरीका यह है की बस दिल में नमाज़ पढने का इरादा करे। आपका इरादा ही नमाज़ की नियत है। इस इरादे को खास किसी अल्फाज़ से बयान करना, जबान से पढना ज़रूरी नहीं। नियत के बारे में तफ्सीली जानकारी के लिए नीचे लिंक पे क्लिक करे।
“तयम्मुम” की निय्यत कीजिये (निय्यत दिल के यूं कहिये : बे वुज़ूई या बे गुस्ली या दोनों से पाकी हासिल इरादे का नाम है, ज़बान से भी कह लें तो बेहतर है।
मसलन करने और नमाज़ जाइज़ होने के लिये तयम्मुम करता हूं) “बिस्मिल्लाह” पढ़ कर दोनों हाथों की उंग्लियां कुशादा कर के किसी ऐसी पाक चीज़ पर जो ज़मीन की क़िस्म (म-सलन पथ्थर, चूना, ईंट, दीवार, मिट्टी वगैरा) से हो मार कर लौट लीजिये (यानी आगे बढ़ाइये और पीछे लाइये) ।
और अगर ज़ियादा गर्द लग जाए तो झाड़ लीजिये और उस से सारे मुंह का इस तरह मस्ह् कीजिये कि कोई हिस्सा रह न जाए अगर बाल बराबर भी कोई जगह रह गई तो तयम्मुम न होगा।
फिर अगली बार हाथ को जमीन पर मार कर दोनों हाथों को कोहनियों सहित कीलों से पोंछ लें, बेहतर तरीका यह है कि चारों अंगुलियों के पंजे को सीधे हाथ के पिछले हिस्से पर अंगूठे से अलग रखें। विपरीत हाथ और उंगलियों के बंद होने के साथ। इसे कोहनियों तक ले जाएं और फिर उस बिंदु से उल्टे हाथ के मध्य भाग से सीधे हाथ के पेट को दबाएं।
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